बस्तर । भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी ने आरोप लगाया है कि सात अप्रैल को सुरक्षा बलों द्वारा ग्रामीण इलाकों में रॉकेट से बमबारी की जा रही है। ड्रोन से हवाई हमले किए जा रहे हैं। इसके चलते लोगों में भय और डर का माहौल बना हुआ है।

केंद्र सरकार ने नक्सलियों/माओवादियों का पूरी तरह से खात्मा करने के लिए सुरक्षा बलों को ‘फ्री’ हैंड दे दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी कह चुके हैं कि तीन साल में कोई भी नक्सली नहीं बचेगा। चाहे किसी भी राज्य में नक्सली हों, इस अवधि में उन्हें खत्म किया जाएगा। ऐसे में संभव है कि आने वाले समय में सैकड़ों नक्सली, सुरक्षा बलों के समक्ष सरेंडर करते हुए दिखाई दें।

विशेषकर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में आए दिन फॉरवर्ड ऑपरेशन बेस ‘एफओबी’ स्थापित किए जा रहे हैं। नतीजा, नक्सली अपने पुराने ठिकाने छोड़कर घने जंगल की तरफ भागने लगे हैं। दूसरी तरफ, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी ने आरोप लगाया है कि सात अप्रैल को सुरक्षा बलों द्वारा ग्रामीण इलाकों में रॉकेट से बमबारी की जा रही है। ड्रोन से हवाई हमले किए जा रहे हैं। इसके चलते लोगों में भय और डर का माहौल बना हुआ है।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी का दावा है कि सुरक्षा बलों ने दक्षिण बस्तर के पामेड़ इलाके में सात अप्रैल को रॉकेट से बमबारी की है। कमेटी ने कड़े शब्दों में इस बमबारी की निंदा की है। कमेटी के मुताबिक, सात अप्रैल को बीजापुर-सुकमा जिलों के सीमावर्ती क्षेत्र, पालागुड़ा, इत्तागुड़ा, जिलोरगड्डा, गोम्मगुड़ा व कंचाल आदि गांवों और जंगलों में रात पौने 12 बजे, करीब तीस मिनट तक रॉकेट लांचरों से भीषण बमबारी की गई। गांव और जंगल में रॉकेट लांचरों से 30 से अधिक हाई एक्सप्लोसिव बम दागे गए हैं।

जहां पर ये बम गिरे हैं, वहां 100 से 200 वर्ग मीटर इलाके में पेड़-पौधे तथा जानवर नष्ट हो गए। लोगों ने इधर-उधर भागकर अपनी जान बचाई है। इससे पहले भी नक्सलियों द्वारा कई बार यह आरोप लगाया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रोन से बमबारी की जा रही है। अंधेरे में एयर स्ट्राइक की जाती है।

दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी द्वारा अपने प्रेस बयान में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में भय और डर का माहौल बना हुआ है। इन दिनों जंगल और खेतों में महुआ बिनने का काम जोरों पर है। यही आदिवासियों की आय का प्रमुख स्रोत है। महुआ के फूल को जंगली जानवरों द्वारा खाने से बचाने के लिए लोग, दिन रात पेड़ों के नीचे ही सो रहे हैं। इस तरह की बमबारी से लोगों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।

दक्षिण बस्तर डिविजन (बीजापुर सुकमा जिला) में गत चार माह में 11 फॉरवर्ड ऑपरेशन बेस ‘एफओबी’ स्थापित किए गए हैं। बेस पर सीआरपीएफ, कोबरा, एसटीएफ और डीआरजी आदि, बलों के जवान तैनात हैं। सभी कैंपों से हर दिन रॉकेट, 81 एमएम मोर्टार और ड्रोन के द्वारा बमबारी की जा रही है। दो तीन किलोमीटर की दूरी पर एक कैंप स्थापित कर दक्षिण बस्तर इलाके को पुलिस कैंप में तब्दील कर दिया गया है। कमेटी ने सुरक्षा बलों पर ज्यादती और अत्याचार करने का आरोप लगाया है। महिलाओं के साथ यौन शोषण के आरोप भी लगाए गए हैं।

देश के विभिन्न हिस्सों में फैले नक्सलवाद पर आखिरी प्रहार करने की तैयारी शुरू हो चुकी है। केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ और संबंधित राज्य की पुलिस फोर्स, इस राह पर आगे बढ़ चुके हैं। नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों की इस लड़ाई में सीआरपीएफ एवं इसकी विशेष प्रशिक्षित इकाई ‘कोबरा’ को कई अहम जिम्मेदारियां दी जा रही हैं। इंटेलिजेंस इनपुट के आधार पर कार्रवाई हो रही है। सुरक्षा बलों ने जंगल, पहाड़, गांव और गुफाओं में दस्तक दी है।

सीआरपीएफ जवानों ने हाल ही में सुकमा के किस्टाराम थाना क्षेत्र के डुब्बामरका एवं बीरम के जंगलों में स्थित एक गुफा में रखे गए विस्फोटकों एवं हथियारों का जखीरा पकड़ा है। गुफा में बैरल ग्रेनेड लॉन्चर (बीजीएल), बीजीएल प्रोजेक्टर, जिलेटिन रॉड, इलेक्ट्रोनिक डेटोनेटर और आईईडी बनाने का दूसरा सामान बरामद किया गया। सीआरपीएफ के महानिदेशक अनीश दयाल सिंह ने बल के 85वें ‘परेड डे’ पर साफ कर दिया था कि देश में नक्सलवाद, अब ज्यादा समय तक नहीं टिकेगा। धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलवाद पर आखिरी प्रहार करने के उद्देश्य से 31 नए फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस स्थापित किए गए हैं।

नक्सल प्रभावित इलाकों में स्थापित 31 नए फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस का फायदा, केवल सुरक्षा बलों को ही नहीं मिलता, बल्कि इसकी मदद से उस इलाके में विकास की एक राह प्रशस्त होती है। सड़क, पुल, मोबाइल टावर और विकास के दूसरे कामों में तेजी आ जाती है। वहां रह रहे ग्रामीणों को यह भरोसा होता है कि अब सुरक्षा बलों ने इलाके की कमान संभाल ली है। उनके बच्चों को स्कूलों में जाने का अवसर मिलेगा। अगर उनके खेतों में नकदी फसलों की पैदावार होती है, तो उसे मंडी तक पहुंचाने की सुविधा मिल जाती है।

जब तक वहां पर राज्य सरकार का स्वास्थ्य महकमा अपना केंद्र स्थापित नहीं करता, तब तक ग्रामीण इलाकों में लोगों को प्राथमिक चिकित्सा सुविधा बल के जवानों द्वारा मुहैया कराई जाती है। कई बार तो गहरे जंगलों के बीच से सीआरपीएफ जवान, बीमार या घायल हुए ग्रामीणों को अपने कंधों पर स्वास्थ्य केंद्र या एंबुलेंस तक पहुंचाते हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीते दिनों वामपंथी चरमपंथ (एलडब्ल्यूई) से प्रभावित 10 राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ एक व्यापक समीक्षा बैठक की थी। बैठक में विशेष वित्त पोषण योजना के तहत आने वाले जिलों के सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) को लेकर चर्चा की गई। देश में माओवादी चरमपंथ प्रभावित जिलों की संख्या 72 से घटकर 58 रह गई है। केंद्र व राज्यों की तरफ से सुरक्षा और विकास से संबंधित उठाए जा रहे कदमों की वजह से वामपंथी हिंसा में कमी आई है। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों में राष्ट्रीय नीति व कार्य योजना के अंतर्गत एसआरई योजना के तहत विभिन्न अनुदान प्रदान किए जाते हैं।

समीक्षा में पता चला है कि वामपंथी चरमपंथ प्रभावित जिलों में सबसे अधिक संख्या 15 जिले छत्तीसगढ़ में हैं। इसके बाद ओडिशा में सात, झारखंड में पांच, मध्यप्रदेश में तीन और केरल, तेलंगाना व महाराष्ट्र दो-दो, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश एक-एक जिला प्रभावित है। इस श्रेणी में उन जिलों को रखा जाता है, जहां वामपंथी हिंसा लगातार बनी हुई है। हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों की संख्या अब 12 रह गई है। 2021 में यह संख्या 25 थी। इस श्रेणी के 12 जिलों में से छत्तीसगढ़ में सात, ओडिशा में दो, झारखंड, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में एक-एक हैं।