बिजनौर। महाभारत काल में नजीबाबाद और कोटद्वार के बीच मालन नदी के तट पर प्राचीन सभ्यता थी, इसकी निशानियां अब तक यह जंगल उगलता रहा है। राजा मोरध्वज के किले के नाम से मशहूर इस जगह अब फिर से प्राचीन शिलाएं और मूर्तियां मिली हैं। दरअसल, नेशनल हाईवे पर डालने के लिए मिट्टी उठाई गई तो 30 शिलाएं जमीन से बाहर आ गईं, जिनमें भगवान गणेश, भगवान बुद्ध की मूर्ति और शिवलिंग की जलाधारी शामिल है। कुछ शिलाओं को मयूरेश्वर मंदिर में संरक्षित कर लिया गया है।
नजीबाबाद से कोटद्वार के बीच मेरठ-पौड़ी हाईवे को फोरलेन किया जाना है। इसके लिए मिट्टी भरान में बड़िया गांव के पास में एक खेत से मिट्टी उठाई जा रही थी। मिट़्टी उठाते हुए पत्थर की करीब 30 शिलाएं मिलीं। जिस जगह से यह खनन किया जा रहा था, उस जगह को बाबा सत्ती मठ बोला जाता है। यहां एक प्राचीन पेड़ के आस पास कुछ पुराने निर्माण की निशानियां अभी तक मौजूद हैं।
मिट्टी उठाने के काम में लगे गांव निवासी मीनू को ये शिलाएं मिलीं है। इनमें एक शिला पर श्री गणेश और बुद्ध की मूर्ति बनी हुई है, जबकि एक शिला शिवलिंग की जलाधारी की बताई जाती है। शिलाएं लगभग 5000 वर्ष पूर्व राजा मोरध्वज काल की होना प्रतीत होती हैं। ट्रैक्टर चालक मीनू ने मिट्टी उठान के दौरान मिलीं शिलाओं को बडि़या क्षेत्र के ही किसान जसविंदर सिंह के सुपुर्द कर दिया।
सभ्यता का प्रमाण है मयूरेश्वर और मोरध्वजरेश्वर मंदिर बड़िया गांव से थोड़ा आगे हाइवे के बाई ओर मारेध्वजरेश्वर शिव मंदिर है। इस मंदिर का शिवलिंग और जलाधारी जमीन में दबी हुई मिली थी। वहीं, हाईवे के बाई ओर मयूरेश्वर मंदिर का शिवलिंग भी वन क्षेत्र में दबा हुआ मिला था। दोनों मंदिर की जलाधारी चकौर है, जोकि उत्तर भारत में कहीं दिखाई नहीं देती। समय समय पर खेतों की जोताई में मिलते रहे अवशेष इन दोनों मंदिरों पर रखे हुए हैं। अब बुधवार को मयूरेश्वर मंदिर की देखभाल करने वाले बड़िया निवासी देवराज सहगल ने खोदाई में मिली शिलाओं को अपने कब्जे में लेकर मयूरेश्वर मंदिर के संग्रहालय में रखवाया है।
नजीबाबाद के पास नजीबुददौला का किला है, इसे बाद में सुल्ताना के नाम से जाना गया। बताया जाता है कि नजीबाबाद से कोटद्वार के बीच राजा मोरध्वज का किला हुआ करता था। इस किले से पत्थर लाकर नजीबुद्दौला ने किले का निर्माण कराया था। पुरातत्व के जानकार लोग कहते हैं कि कश्मीर से लेकर बिहार तक ऐसे पत्थर कहीं और नहीं मिलते। मथुरापुर मोर क्षेत्र से मिलीं शिलाएं दो से ढाई फीट लंबी-चौड़ी हैं। अनुमान है कि मोरध्वज किला क्षेत्र के अवशेष के रूप में बचीं शिलाएं हैं। शिलाओं का वजन 50 किलोग्राम से 80 किलोग्राम तक है।
नवाब नजीबुद्दौला के बनाए पत्थरगढ़ के किले के निर्माण में जीन शीला पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, उनकी मथुरापुर क्षेत्र से मिले पत्थरों में काफी समानता है। पत्थरगढ़ के किले में मोरध्वज किला क्षेत्र के पत्थरों का प्रयोग हुआ था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मेरठ मंडल के अधीक्षण पुरातत्व विद विनोद सिंह रावत ने बताया कि प्राचीन शिलाएं मिलने के संबंध में जांच टीम भेजकर जांच कराई जाएगी। टीम नजीबाबाद क्षेत्र में पहुंचकर जांच करेगी।
बड़िया क्षेत्र में मालन नदी के किनारे पहले से ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त होते रहे हैं। यहां से मिलने वाली तमाम शिलाएं और मूर्तियां गढ़वाल विश्वविद्यालय में रखवा दी गईं थीं। इसके बाद भी पुरातत्व विभाग ने कभी इस क्षेत्र में उत्खनन करना गंवारा नहीं समझा।
पुरातत्व के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र में मिट्टी खनन किया जा रहा था। मिट्टी का खनन होता रहा और शिलाएं तथा प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिलते रहें। मगर, नजीबाबाद तहसील प्रशासन ने इस पर गौर नहीं किया। तमाम शिलाएं उक्त जगह से उठकर हाईवे के चौड़ीकरण में भी दफन हो गई।