हरियाणा। हरियाणा में चल रहे लोकसभा चुनावों में इस बार राष्ट्रीय पार्टी भाजपा और कांग्रेस के बीच दसों सीटों पर मुकाबला है, लेकिन हरियाणा के क्षेत्रीय दल इनेलो और जजपा भी मुकाबलों को दिलचस्प बना रही हैं। दोनों ही दल कई सीटों पर समीकरण बनाने और बिगाड़ने का वजूद रखते हैं। चुनाव में दोनों ही पार्टियां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है और दोनों दलों ने पूरी ताकत झोंकी हुई है। इनेलो के लिए इस बार छह प्रतिशत मत हासिल करना इसलिए जरूरी है, ताकि उनका चश्मे का चुनाव चिन्ह बचा रहे। चार माह के बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं और लोकसभा चुनावों को सेमीफाइनल मान कर चल रहे हैं, इसलिए दोनों दल करो या मरो की स्थिति में एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।
इस बार जननायक जनता पार्टी प्रदेश की दसों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि इनेलो ने पांच सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। इनमें अंबाला, कुरुक्षेत्र, सिरसा, हिसार की सीटें शामिल हैं, जबकि करनाल में एनसीपी के वीरेंद्र मराठा को इनेलो ने अपना समर्थन दे रखा है और शेष लोकसभा सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवार नहीं उतारे। दोनों ही दलों का वोटबैंक किसान, ग्रामीण और खासकर जाट समाज है। अब देखना यह है कि लोकसभा चुनावों में दोनों क्षेत्रीय दलों की स्थिति कैसी रहती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संसदीय चुनावों में जजपा व इनेलो के लिए मूल वोट बैंक जाटों को बनाए रखना एक कठिन काम होगा।
दिसंबर 2018 में इनेलो में हुए विभाजन से बनी जजपा से पहले का चुनावी रिकॉर्ड प्रभावशाली रहा है। वास्तव में इनेलो लगातार लोकसभा चुनावों में 15 प्रतिशत से 28 प्रतिशत वोट हासिल करती रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में इनेलो के दो सांसद थे और उन्हें 24.4 प्रतिशत वोट मिले थे। 2019 में मात्र 1.9 प्रतिशत वोट मिल सके। इनेलो के अभय चौटाला अपने पुराने गढ़ कुरुक्षेत्र के रण में हैं। अभय को यहां जाट और रोड़ समुदाय और खासकर किसानों से वोट की उम्मीद है, क्योंकि अभय ने किसान आंदोलन के समय विधानसभा पद से इस्फीफा दिया था। इसी के चलते भाकियू के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने उनको खुला समर्थन दिया हुआ है।
2019 के लोकसभा चुनाव में जजपा का प्रदर्शन भी कुछ खास नहीं रहा और उसे केवल 4.9 प्रतिशत वोट ही मिले थे। इसके बाद विधानसभा चुनाव में जजपा 10 सीटें जीतकर किंगमेकर के रूप में उभरी और हरियाणा में सरकार बनाने के लिए गठबंधन किया। इस साल मार्च में यह गठबंधन टूट गया। हालांकि, जजपा ने अंतिम क्षणों तक कोशिश की कि भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जाए, लेकिन हाईकमान ने जजपा को झटका दे दिया। जजपा दो सीटें मांग रही थी, पर बात नहीं बनी।